पर्याप्त नहीं है न्यायप्रिय होना
क्योंकि अन्याय बहुतों को प्रिय है
और वे अन्याय को न्याय सिद्ध कर
तुम्हारा शोषण करेंगे।

साहसी होना भी कहाँ पर्याप्त है
अशक्त हो यदि तुम
कुचल देंगे वे दुस्साहसी 
तुम्हारे बढ़ते कदम को

पर्याप्त नहीं है सत्य बोलना भी
क्योंकि सत्य के साथ कौन खड़ा होगा
स्वार्थ पूर्ति हेतु वे 
सत्य का भी गला घोंटते रहेंगे

पर्याप्त नहीं है विश्वास करना भी
क्योंकि धोखा अवश्य देंगे
और वे कोई अन्य नहीं
तुम्हारे अपने ही लोग होंगे  

© Adarsh Kumar Patel

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