विचार समस्या नहीं, विचार की आंधी समस्या है।
ऐसी आंधी भी तभी तक समस्या है, जब तक उसे झेलने के लिये सामने खड़ा हूँ मैं। इस समस्या के निर्मूलन के लिए उन सब कारकों की पहचान करना भी आवश्यक है जो मुझे इस आँधी में उलझाए रखते हैं।
 यदि एक सहारा ढूंढ लिया जाए तो कैसी भी आंधी हो परवाह न करूँगा । सहारा स्थिरता प्रदान करता है। आँधी से ही लड़ता रहा तो लक्ष्य का विस्मरण होना अवश्यम्भावी है।

 यदि आंधी चल रही हो और मैं कभी इस घर, कभी उस घर ,बार-बार आश्रय बदलने लगूँ  अर्थात एक छोड़ कर दूसरा, दूसरा छोड़ कर तीसरा और यह क्रम चलता ही जा रहा हो तो किस प्रकार आँधी के थपेड़ों से मेरी रक्षा हो सकेगी। चाहे जितने सुरक्षित घर हों, मेरा बचाव नहीं कर पायेंगे और आँधी के झोंके मुझे उठा-उठा कर पटकते ही रहेंगे। इसके ठीक विपरीत यदि एक सुदृढ़ गृह में प्रवेश पा जाऊँ और आँधी चले जाने तक वहीं निवास करूँ तो मेरे प्राण और फलस्वरूप मेरे संकल्पों की रक्षा अवश्य हो सकती है।

एक विचार, जो लक्ष्य प्राप्ति में बाधा न हो बल्कि साधन बन सके, पर्याप्त है। उसी के आश्रय में टिके रहना है।

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