Diwali ki Safai

हाँ-हाँ आप से ही 
आप से ही पूछ रहा हूँ 
मिला कुछ आपको, या नहीं 
इस बार दीवाली की सफाई में 
या इस बार भी बस
 हाथ ही मैले किये 

पाया कुछ ऐसा 
जिसे देख 
ठहर गया हो वक़्त भी 
और सब छोड़कर 
आपका मन 
कुछ देर के लिए ही सही 
किसी और काल में 
प्रवेश कर गया हो 

मिला.........
मुझे तो मिला 
मेरा क़ीमती खज़ाना 
इतना सुरक्षित रखा था मैंने 
कि अब मिला है 
वर्षों बाद 
बचपन की यादों को समेटे हुए 
मेरे ख़िलौने 

कुछ सलामत,
कुछ टूटे हुए 
 पर टूटे हुए भी ऐसे कि 
छूट न सके 
भूल गया था उनको 
किन्तु सम्भाले  थे मैंने 

वो टूटा लट्टू आज भी नाचता है 
मेरे घुमाने से 
वो नाना जी वाली स्टीमर बोट 
आज भी है मेरे पास 
और वो कलर पेंसिल का सेट 
रख दिया है संभालकर 
किसी और दिन 
चित्रकारी करने के लिए 

उसी धुन में 
सब कुछ भुलाकार 
चाहता हूँ 
कि फिर से खेलूँ 
वही खेल 

वे कंचे दीवार से सटाकर 
उनमें जान ड़ालकर 
जो ढलान से फिर भागते-भागते 
मेरी तरफ आयेंगे 
और मैं डंडे से उनको 
पीछे धकेलता रहूँ ....

-Adarsh Kumar Patel 



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Tags: Hindi Poem, Poem on Diwali, Diwali ki safai

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