अचरज आँखों में नींद नहीं
बेचैन हुआ मन मेरा है
निद्रा में देखो लीन सभी
सन्नाटा कितना गहरा है
कुछ हुआ आज यूँ सुबह-सुबह 
कुछ काम अनोखा कर आये
कुछ पहले से था और साथ में 
जोश लबालब भर लाये
गतिमान हमारे पाँव आज 
चलचित्र भवन की ओर बढ़े
चल रहा किसी श्रीमान का एक 
वक्तव्य सुन लिया खड़े-खड़े
फिर क्या था थोड़ा सुना और 
ज्यादा सुनने की इच्छा से
जम गये हमारे पाँव प्राप्त कर 
ऐसी दुर्लभ  शिक्षा से
असफल होते हर बार जीत की 
आस लगाना क्यों त्यागें
थोड़े घायल होते ही हम 
मैदान छोड़कर क्यों भागें
रणनीति बना डाली हमने 
उत्साहित इतना हो कर के
एक नींद मार लें करें शुरू 
फिर थोड़ा सा हम सो कर के
छोटी सी घटना घटी और 
दिन का वो पंछी भाग गया
किन्तु लगता है एक ओर 
एक सोया  उल्लू जाग गया
किससे कह दें अब कौन सुने 
यह कथा हमारे रोने की
अब ध्यान नहीं देता कोई 
सबको जल्दी है सोने की
अपने स्वप्नों में मग्न सभी 
हाँ हूँ हूँ करते जाएंगे
फिर देख के सोता उन सब को 
सर पीट के हम सो जाएंगे....

                    -(आदर्श कुमार पटेल)

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