भावों की आज यहाँ लहरें
प्रतिपल मुझको सहलाती हैं
होता हूँ एकाकी जब भी
कितना उत्पात मचाती हैं
प्रतिपल मुझको सहलाती हैं
होता हूँ एकाकी जब भी
कितना उत्पात मचाती हैं
लेकिन आशीष तुम्हारा ही
जो मुझको सदा बचाता है
बनकर प्रकाश अँधेरे में
आगे की राह दिखाता है
जो मुझको सदा बचाता है
बनकर प्रकाश अँधेरे में
आगे की राह दिखाता है
जीवन की राह अनोखी है
कब नये पथिक आ मिलते हैं
कुछ समय बीतने पर वे भी
क्यों अपनी राह बदलते हैं
कब नये पथिक आ मिलते हैं
कुछ समय बीतने पर वे भी
क्यों अपनी राह बदलते हैं
पल दो पल हृदय में अंश मात्र
बस अतिक्रमण कर लेने दो
फिर कर देना चाहे विस्मृत
पर अभी रमण कर लेने दो...
बस अतिक्रमण कर लेने दो
फिर कर देना चाहे विस्मृत
पर अभी रमण कर लेने दो...
Wow.. It's great.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भ्राता
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया☺️👍👌
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