Jo saath tumhare beeta hai




अचरज में हूँ कि आज मुझे
यूँ छोड़ तुम्हें क्यों जाना है
जो साथ तुम्हारे बीता है
याद आता वक़्त पुराना है

भावों की आज यहाँ लहरें
प्रतिपल मुझको सहलाती हैं
होता हूँ एकाकी जब भी
कितना उत्पात मचाती हैं
लेकिन आशीष तुम्हारा ही
जो मुझको सदा बचाता है
बनकर प्रकाश अँधेरे में
आगे की राह दिखाता है

जीवन की राह अनोखी है
कब नये पथिक आ मिलते हैं
कुछ समय बीतने पर वे भी
क्यों अपनी राह बदलते हैं
पल दो पल  हृदय में अंश मात्र
बस अतिक्रमण कर लेने दो
फिर कर देना चाहे विस्मृत
पर अभी रमण कर लेने दो...


© Adarsh Kumar Patel




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