हमारा ताना-बाना  (१)                   


हमारे वर्तमान समाज का एक वर्ग ऐसा है जो अपनी अद्भुत कल्पनाशक्ति के प्रयोग से सूचनाओं का निर्माण करता है और वो भी मात्र सूचनाओं के कुछ बिंदुओं से। समाज में ये लोग अल्पसंख्यक होते हैं किंतु बेहद प्रभावशाली। सत्य को जानने में उनकी कोई रुचि नहीं है किंतु स्वनिर्मित सूचनाओं का प्रसार अग्निवेग से करने में ये पारंगत होते हैं। ये अतिविशिष्ट जन अपनी श्रद्धा, द्वेष और अभ्यास इत्यादि के आधार पर नयी-नयी तरह की  सूचनाओं (समाचारों) का निर्माण करते हैं।क्योंकि यही निर्माण इनको क्रियाशील बनाये रखते हैं और प्रतिष्ठित भी। सबसे अनोखी सूचनाओं का इनके पास भंडार होता है।

वहीं एक दूसरा वर्ग भी है जो मननशील तो है किंतु मात्र उपलब्ध सूचनाओं पर- ऐसी सूचनायें जिनका प्रथम स्रोत अतिविशिष्ट जन होते हैं। इन्हें भी सत्य से कुछ लेना-देना नहीं है। सुने हुए सत्य (अथवा असत्य) को गृहण करना और तदनुसार सम्मति अथवा जनमत तैयार करना ही उन्हें आसान और ठीक जान पड़ता है।ऐसा इसलिये भी है क्योंकि सत्य-असत्य की जाँच करने का समय इनके पास नहीं होता। ये लोग उतने विशिष्ट तो नहीं होते हैं किन्तु समाज में संख्या बल होने से एक अहम भूमिका तो निभाते ही हैं। निर्णय तो इनका ही सर्वमान्य होता है।

समाज के किसी छोटे-बड़े व्यक्तित्व को मान देना या हेय दृष्टि से दिखाना-देखना इन दोनों पर ही निर्भर है। 

शेष अगले भाग में...




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