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एक आतंकवादी |
यदि मनुष्य धर्म की दृष्टि से देखा जाये तो आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। किन्तु यदि समग्र धर्मों को देखा जाये तो आतंकवाद का भी धर्म होता है- पशुवत धर्म।
जिसके अलग ही कर्म हैं जो मनुष्य से टकराव पैदा करेंगे ही। पशु को तो आतंक का ही सहारा है दूसरों को अपने अधीन करने के लिये। लेकिन पशुत्व बढ़ने से मनुष्यता पर संकट बढ़ता ही है। इसलिये पशु पर अंकुश लगाना एकदम उपयुक्त व्यवहार है।
हमारे भीतर (मैं नहीं जानता कहाँ) मनुष्य और पशु दोनों ही तरह के संस्कार के बीज हैं। हम जिस तरह के बीज को विकसित होने का अवसर देते हैं, वही हो जाते हैं- मनुष्य अथवा पशु। यदि ऐसा पशु विकसित होता रहता है तो वह सामान्य पशु से भी अधिक पाशविक होता है अर्थात पाश में बंधा होता है। मनुष्यता के लिये उससे बड़ा संकट कोई और नहीं हो सकता। इसलिये यदि उस पर अंकुश न लगाया गया तो सम्पूर्ण मानवता को नष्ट कर सकने की क्षमता उसमें होती है। उसको और उसके गिरोह को हर युक्ति से सुधारने का प्रयास करना चाहिये। यदि सुधार संभव न हो तो उस जैसे पशुओं का वध ही अंतिम उपाय हो सकता है।
यह मेरा व्यक्तिगत विचार है
🙏
Tags:Hindi Article, हिंदी लेख
सहमत
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